स्वेज नहर- Suez Canal | Swej Nehar
स्वेज़ नहर (Suez Canal/Swej Nahar)के बनने के बाद यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सीधा और सरल मार्ग प्राप्त हो गया है, जिससे एशिया और यूरोप के बीच की 6000 किलोमीटर की दूरी को सिर्फ 300 किलोमीटर में कवर किया जा सकता है। इस कारण यात्रा में 7 दिनों की कमी आई है। इस मार्ग के कारण समय और ईधन की काफी बचत होती है।
औसत गहराई - 16.5 मीटर
चौडाई - 60 मीटर
प्रारंभ बिंदु (Start point) - पोर्ट सईद
अंत बिंदु (End point) - स्वेज़ पोर्ट
स्वेज़ नहर (Suez Canal/Swej Nahar) को पार करने में जलयानों को 12 से 16 घण्टों का समय लगता है। स्वेज नहर को पार करते समय जलयानों की गति 11 से 16 किलोमीटर प्रति घण्टे के बीच होती है। चौड़ाई कम होने कारण इस नहर से एक साथ दो जलयान पार नही हो सकते हैं। इस नहर से होकर एक दिन मे अधिकतम 24 जलयानो का आवागमन हो सकता है।
हाल ही में एक बड़े कंटेनर पोत, एम.वी. एवर गिवेन (MV Ever Given) के कारण स्वेज नहर का पारगमन मार्ग अवरुद्ध हो गया। विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण पारगमन मार्गों में से एक मानी जाने वाली स्वेज़ नहर में इस तरह के ब्लॉकेज/अवरोध के चलते वैश्विक शिपिंग में अत्यधिक व्यवधान उत्पन्न हो गया।
यह अस्थायी अवरुद्धता वैश्विक व्यापार के लिये बहुत महँगी साबित हुई है, क्योंकि अनुमान लगाया जा रहा है कि इसके कारण प्रति घंटे लगभग 400 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। जटिल एवं नाजुक रूप से संतुलित वैश्विक आपूर्ति-शृंखला और तेल की कीमतों पर इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण ग्राहकों पर अतिरिक्त भार पड़ेगा।
स्वेज़ नहर का पारगमन मार्ग अवरुद्ध होने के कारण व्यापार और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव वैश्विक व्यापार की नाजुकता की ओर इशारा करता है जिसे मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है।
स्वेज़ नहर : पृष्ठभूमिस्वेज़ नहर की उत्पत्ति का इतिहास बहुत पुराना है, मिस्र के राजा सेनूस्रेट तृतीय फिरौन के शासनकाल (1874 ईसा पूर्व) के दौरान प्रथम जलमार्ग की खुदाई की गई थी।हालाँकि इस अल्पविकसित नहर को सिल्टिंग यानी गाद जमा होने के कारण छोड़ दिया गया था और बीच की शताब्दियों के दौरान इसे कई बार खोला भी गया था।
फ्राँसीसियों के प्रयासों द्वारा 19वीं शताब्दी के मध्य में आधुनिक स्वेज़ नहर का निर्माण किया गया और 17 नवंबर, 1869 को इसे नेविगेशन के लिये खोला गया था।
वर्ष 1858 में यूनिवर्सल स्वेज़ शिप कैनाल कंपनी (Universal Suez Ship Canal Company) को 99 वर्षों के लिये नहर के निर्माण और संचालन का काम सौंपा गया जिसके बाद इसका अधिकार मिस्र सरकार को सौंपा जाना था।
मिस्र स्थित इस कृत्रिम समुद्री जलमार्ग का निर्माण भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने के लिये वर्ष 1859 और 1869 के बीच किया गया था।
स्वेज़ नहर यूरोप और एशिया को जोड़ने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, साथ ही यह अफ्रीका में से होकर नेविगेट (जलयात्रा) करने की आवश्यकता को समाप्त करती है और इस तरह 7,000 किमी. तक की दूरी को कम करती है।
स्वेज़ नहर के कारण ही एशिया और यूरोप के बीच मिस्र की स्थिति एक रणनीतिक जंक्शन के रूप में है। उपनिवेशों और अर्द्ध-उपनिवेशों द्वारा ज़ोर दिये जाने के बाद जमाल अब्देल नासेर ने वर्ष 1956 में इस नहर का राष्ट्रीयकरण किया।वर्ष 1956 में ब्रिटेन, फ्राँस और इज़रायल ने इस नहर पर निर्भर अपने कॉर्पोरेट हितों की रक्षा के लिये मिस्र पर आक्रमण किया। इस युद्ध को स्वेज़ संकट (Suez Crisis) की संज्ञा दी गई।
स्वेज़ नहर का महत्त्वउपनिवेशीकरण को सक्षम बनाने में: स्वेज़ नहर का निर्माण वैश्विक समुद्री कनेक्टिविटी की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण विकास था और इसने औपनिवेशिक इतिहास को स्पष्ट रूप से प्रभावित किया।ब्रिटिश साम्राज्य का उदय काफी हद तक इस नहर द्वारा ही सक्षम हुआ था।
वैश्विक व्यापार की जीवन-रेखा: यह नहर पश्चिम और पूर्व के बीच सभी प्रकार के व्यापार हेतु एक जीवन रेखा के रूप में कार्य करती है क्योंकि प्रतिवर्ष लगभग 10% वैश्विक व्यापार इस मार्ग से ही होता है।नहर के माध्यम से प्रतिदिन भेजे जाने वाले माल की कीमत अनुमानतः 9.5 बिलियन डॉलर है और यह नहर मिस्र सरकार के लिये राजस्व के एक बड़े हिस्से का सृजन करती है।
ग्लोबल चोक पॉइंट्स में से एक: वोल्गा-डॉन और ग्रैंड कैनाल (चीन) के अलावा स्वेज़ और पनामा (जो प्रशांत और अटलांटिक महासागरों को जोड़ती है) वैश्विक समुद्री क्षेत्र की दो सबसे महत्त्वपूर्ण नहरें हैं।
स्वेज़ के अवरुद्ध होने का प्रभाव:स्वेज़ नहर में उत्पन्न ब्लॉकेज की स्थिति महामारी तथा खरीद में उछाल के कारण पहले से ही दबावग्रस्त आपूर्ति शृंखला पर और अधिक दबाव डाल सकती है।
इस अवरुद्धता के कारण मध्य-पूर्व से यूरोप तक तेल और प्राकृतिक गैसों का शिपमेंट भी प्रभावित हुआ है।
स्वेज नहर निर्माण
स्वेज नहर के निर्माण की योजना पर फ्रांस के राजनयिक डि लेसेप्स ने 1854 में काम करना शुरू किया था।1858 में स्वेज नहर का निर्माण करने के लिए एक कंपनी की स्थापना की गई, जिसका नाम यूनिवर्सल स्वेज शिप कैनाल कंपनी था।
99 वर्ष के लिए यूनिवर्सल स्वेज शिप कैनाल कंपनी को नहर के निर्माण और संचालन का काम सौंपा गया।
स्वेज़ नहर का निर्माण सन् 1859 से 1869 तक हुआ।
ये नहर 1869 में बनकर तैयार हुई और इसे अंतरराष्ट्रीय यातायात के लिए आधिकारिक रूप से 17 नवम्बर 1869 को खोला गया।
इस नहर को बनाने में लगभग 100 मिलियन डॉलर का खर्च आया था ।
पहले इस नहर का प्रबंधन कार्य यूनिवर्सल स्वेज शिप कैनाल कंपनी करती थी। इसके 50% शेयर फ्रांस और 50% शेयर तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों के थे। बाद में मिस्र और तुर्की के शेयरों को अंग्रेजों ने खरीद लिया। 1875 में ग्रेट ब्रिटेन स्वेज कनाल कंपनी का सबसे बड़ा शेयर धारक बन गया।
1882 में ब्रिटेन ने मिस्र पर अपना अधिकार कर लिया। लेकिन 1888 ई. में हुई एक अन्तरराष्ट्रीय सन्धि के अनुसार स्वेज नहर युद्ध और शान्ति दोनों समय में सभी देशों के जलयानों के लिए बिना किसी रोकटोक के समान रूप से आने-जाने के लिए खोल दी गयी।
इस समझौता में यह सहमति बनी थी की इस नहर पर किसी एक राष्ट्र की सेना तैनात नहीं रहेगी। किन्तु अंग्रेजों ने 1904 ई॰ में इस समझौते को तोड़ दिया और नहर पर अपनी सेनाएँ तैनात कर दी और उन्हीं राष्ट्रों के जलयानों के आने-जाने की अनुमति दी जाने लगी जो ब्रिटेन के साथ युद्धरत नहीं थे।
1936 में मिस्र को स्वतंत्रता मिल गयी, लेकिन स्वेज़ नहर का अधिकार ब्रिटेन के पास रहा। 1947 ई॰ में स्वेज कैनाल कम्पनी और मिस्र सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसमे यह निश्चय हुआ कि कम्पनी के साथ 99 वर्ष का पट्टा रद्द हो जाने पर इसका स्वामित्व मिस्र सरकार को मिल जाएगा।
1951 ई. में ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध मिस्र में आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। अन्त में 1954 ई॰ में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार ब्रिटेन कुछ शर्तों के साथ स्वेज़ नहर से अपनी सेना हटा लेने पर सहमत हो गया।
स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण
26 जुलाई 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्देल नसर द्वारा स्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। अतः वर्ष 1956 में ब्रिटेन, फ्रांस और इज़रायल ने स्वेज नहर पर निर्भर अपने व्यावसायिक/व्यापारिक हितों की रक्षा के लिये मिस्र पर आक्रमण किया। इस युद्ध को स्वेज़ संकट (Suez Crisis) के नाम से जाना जाता है।
1956 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया तथा ब्रिटेन व फ्रांस की सेनाओं से मिस्र खाली करने का आदेश दिया। स्वेज नहर कंपनी में अधिकतर शेयर पूंजी ब्रिटिश और फ्रांस सरकार के थे। नासिर के इस कदम से दोनों देशों में हड़कंप मच गया।
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अतः पहले इज़राइल तथा बाद में ब्रिटेन और फ्रांस ने स्वेज नहर पर निर्भर अपने व्यावसायिक/व्यापारिक हितों की रक्षा के लिये मिस्र पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण का उद्देश्य पश्चिमी देशों का नियंत्रण स्वेज नहर पर पुनः स्थापित करना तथा मिस्र के राष्ट्रपति नासिर को सत्ता से हटाना था।
युद्ध प्रारंभ होने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और राष्ट्र संघ ने राजनैतिक हस्तक्षेप किया और आक्रमणकारी देश इज़राइल, ब्रिटेन और फ्रांस पीछे हटने को बाध्य हुए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने मिस्र में एक शान्ति सेना भेजकर वहाँ शान्ति स्थापित करवायी तथा स्वेज नहर को सभी देशों के जलयानों के आवागमन के लिए 1957 में खोल दिया गया।
कब-कब बंद रही है स्वेज नहर?
पहली बार 26 जुलाई 1956 को नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा के बाद उपजे विवाद के कारण इस नहर को बंद किया गया था। इस पर ब्रिटेन और फ्रांस भड़क उठे थे और मिस्र पर आक्रमण कर दिया था। बाद में समझौता हुआ और जलमार्ग फिर से खोल दिया गया।दूसरी बार जून 1967 में नहर बंद रही थी। जून 1967 में इजराइल का मिस्र, सीरिया और जॉर्डन से युद्ध प्रारम्भ हो गया था। यह युद्ध 6 दिन तक चला। इस युद्ध के दौरान 15 जलयान स्वेज नहर मार्ग में फंस गए थे। इनमें से एक जलयान डूब गया था और बाकी 14 जलयान अगले 8 वर्ष तक स्वेज नहर मार्ग में फंसे रह गए थे। इसके कारण इस नहर से व्यापार 8 साल तक बंद रहा था। 5 जून 1975 को स्वेज नहर में आवागमन दोबारा शुरू हो सका।
इन देशों के जहाज फंसे थे-
बुल्गेरिया,
चेक गणराज्य (तब चेकोस्लोवाकिया),
फ्रांस,
पोलैंड,
स्वीडन,
पश्चिमी जर्मनी,
यू.के.
अमेरिका
निष्कर्ष
यह देखा जा सकता है कि भले ही वर्ष 1869 और 1956 से अब तक बहुत कुछ बदल गया है “जहाँ डेटा नए तेल की तरह है” फिर भी वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो अब भी इतिहास में तैयार की गई वास्तविक प्रणालियों के आधार पर चलता है।राजकोषीय और आपूर्ति-शृंखला में व्यवधान के कारण उत्पन्न परिणामों को देखते हुए स्वेज़ नहर के संदर्भ में विशिष्ट मौजूदा प्रक्रियाओं और प्रोटोकॉलों की निष्पक्ष समीक्षा करने की आवश्यकता है तथा निश्चित ही इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।